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5 अप्रैल 2011 दिन मंगलवार। चारो ओर भागदौड। सभी प्रमुख शहरों में मिडिया की कवरेज चाहे प्रिट मिडिया हो या इलेक्टर्ानिक मिडिया। सभी समाचार पत्रों के मुख पृष्ट पर लगभग एक खबरें-भ्रष्टाचार के विरूद्ध अनशन,अन्न् का अनशन शुरू… पुरे देश में एक ही गूँज।बस अब बहुत हो गया… अब बिल्कुल नही…ये सब करने वाली संस्था-इंडिया अगेंस करप्शन।
नेता-अन्ना हजारे
सक्रियता-जंतर मंतर पर धरना
उद्देश्य-जन लोकपाल बिल की माँग
खैर इन खलबली के साथ शुरू होता है हजारे जी का अनशन।ज्यों-ज्यों समय बीतता जाता है इनके समर्थकों की सख्या बढती जाती है। मात्र 3या 4 दिन में यह आमरण अनशन आंदोलन बन जाता है। देश का शायद ही कोई ऐसा वर्ग रहा हो जिसने अपना समर्थन न दिया हो।पुनः 4 दिन बाद समय करवट लेता हैसरकार का बयान आता है कि हम बिल लाने को तैयार है। अन्ना जी नींबू-पानी से अपना आमरण अनशन तोडते हैं। एक बार फिर अखबार और न्यूज चैनलों की बाढ आती है। फिर वही राग-हम जीत गए… फलां मंत्री की अन्ना को बधाई…
बहुत गर्व अनुभव हुआ कि आज 1 व्यक्ति के अवाज को संपुर्ण देश की जनता ने समर्थन दिया।व्यक्ति के अवाज को क्यों एक सच्चाई को…..।यहाँ तक तो घटनाक्रम समझ में आया। लेकिन इसके बाद की स्थिति को देखने पर आँखें धोखा खाने लगती हैं।यकीन ही नहीं होता है कि आरोप-प्रत्यारोप का जो संग्राम अब शुरू हुआ है क्या उसमें वही योद्धा शामिल है जो 9 अप्रैल 2011 तक एक अवाज,एक विचार और एक समान उद्देश्य से अन्ना के समर्थन दे रहे थे। क्या ये वही योद्धा है जो आमरण अनशन का प्रण लिए थे।या ये वे लोग है जिनका स्वार्थ अब पूरा होते नहीं दिख रहा हैअथवा इन्हें भी अपनी सता उखडने का डर है।
इनलोगों का तर्क है कि डर्ाटिंग कमिटी में दागी लोग है।मेरा सवाल ये है कि जब इनलोगों को ये बात पहले से पता थी तो आंदोलन के दौरान ये महाशय लोग कहाँ थे।क्या ये लोग इस दिन के इंतजार में थे कि सरकार जब बिल को स्वीकार कर लेगी तब ये लोग जनता को सच्चाई बताएगें अन्यथा चुप बैठे रहेगें।
यह सच्चाई है और इतिहास गवाह है कि जब जब झूठ की सता हिली है तब-तब सच्चाई पर प्रश्न चिन्ह लगाया गया है।इसलिए समयआ गया है कि ऐसे तत्वों का समूल नाश किया जाय। आज पूरे देश की जनता स्वीकार कर चुकी है कि भ्रष्टाचार का अंत होना चाहिए।अन्ना का आंदोलन उचित है।जन लोकपाल बिल व इसके निर्माता सही दिशा में अग्रसर हैं तो फिर विरोध कैसा।यदि इसपर गंभीरता से विचार करें तो उतर स्वंय मिल जाएगा।
इसके पिछे एक बहुत बडी साजिश है।यह साजिश उन उनलोगों का हैं जिनकोभारत की जनता ने अपने उँगली के दम(वोट) पर संसद भेजा है।संसद में विराजमान इनलोगों को यह ज्ञात हो चुका है कि यदि बिल कानून बन गया तो इनकी बैंड बजना निश्चित है।
इसलिए अब हमलोगों को सावधान हो जाना चाहिए इन साजिशकर्ताओं से।इनकी चाल ये है कि एक ऐसा कानून बनाया जाय जिसमें सिविल सोसायटी के लोग न हो और कुछ दिन बाद इसे रद्दी की टोकरी में डाल दिया जाय। इन्हें पता है कि यदि बिल कानून बन जाता है तो 1947 से लेकर अब तक जितने भीइनके सगे-संबंधी भ्रष्टाचारी है सबकी राम नाम हो जाएगी।
निःसंदेह कोशिश ये होनी चाहिए कि कमिटी के सभी सदस्य चाहे वे सरकारी हो या सिविल सोसायटी के प्रतिनिधि प्रत्येक स्वच्छ छवि के हो।लकिन किसी व्यक्ति विशेष के अतित को लेकर ,जिसका अब कोई विशेष अर्थ नही है उसके तथा पूरे देश के भविष्य के साथ खिलवाड नहीं किया जा सकता है।प्रधानमंत्री जी को स्वंय इस मामले मे हस्तक्षेप करना चाहिए।आरोप-प्रत्यारोप के इस खेल में शामिल कुछ नेताओं पर उन्हें लगाम लगाना चाहिए।अन्यथा भ्रष्टाचार के विरूद्ध जिस सपने को सजाने-सवारने का जो कांरवा शुरू हुआ है वह एक सपना ही बनकर रह जाएगा और भ्रष्टाचारियों का यह खेल समाप्त नहीं होगा।
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